Wednesday, August 27, 2014

यह शख्स ना जाने कैसा है

जो मेरे अन्दर रहता है, यह शख्स ना जाने कैसा है
मायुस फ़तह पर होता है,यह शख्स ना जाने कैसा है

जीने के ख़्वाब भी है शायद, और फ़ना फ़ना भी रहता है,
है जुम्बिश भी और स्पंदन भी, पर ठहरा सा भी रहता है,
यह मै ही हूँ, पर ना जानू, यह कौन है और यह कैसा है.…
जो मेरे अन्दर रहता है, यह शख्स ना जाने कैसा है........

रूह को थिरकाता साज़ भी है, और एहसासों में सोज़ भी है,
मुददत के बाद जशन भी है, और आँखों में अफ़सोस भी है,
यह खुश है या कि है ग़मगीन, यह ऐसा है या वैसा है....    
जो मेरे अन्दर रहता है, यह शख्स ना जाने कैसा है........

तोड़ के बंधन और दीवारें, जी करता है कि उड़ जाए
पर रस्ता  है ना मंज़िल है, फिर कैसे और कहाँ जाए
मीलों मील चले दुनिया यह मील के पथ्थर जैसा है
 जो मेरे अन्दर रहता है, यह शख्स ना जाने कैसा है........

मायुस फ़तह पर होता है,यह शख्स ना जाने कैसा है………