Tuesday, December 15, 2009

इतिहास लिखेंगे

सच्चे शब्दों में सच के अहसास लिखेंगे,

वक्त पढे जिसको कुछ इतना खास लिखेंगे |

गीत गजल हम पर लिखेंगे लिखने वाले,

हमने कलम उठाई तो इतिहास लिखेंगे ||


आँखों में आँखें डाल के डर को डरायेंगे,

जो हार को हरा दे वो प्रयास लिखेंगे |

तूफ़ान को रोक देंगे मुठ्ठी में भींच के,

है कितना खुद पर वो विश्वास लिखेंगे ||

गीत गजल हम पर लिखेंगे लिखने वाले,

हमने कलम उठाई तो इतिहास लिखेंगे......




हर दबी ज़ुबां में हुंकार ले आयेंगे,

आशाओं की नयी इक बरसात लिखेंगे |

चुन चुन के सपनो को, गुलिस्तां बनायेंगे,

और आने वाले कल को सौगात लिखेंगे ||

गीत गजल हम पर लिखेंगे लिखने वाले,

हमने कलम उठाई तो इतिहास लिखेंगे....

Sunday, December 13, 2009

कवि का कार्य

कठिन कार्य जो कविगण करते, सरल वो दुनिया को लगते हैं,
दुनिया को हरपल यों लगता, हम व्यर्थ ही रातों को जगते हैं....

सबके वश का काम नहीं है, सनाट्टे अनुवादित करना,
मूक़ लबों की बात चुराकर, गूढ़ भाव को साबित करना...
बहते झरनों की कल-कल को, शब्दों में परिभाषित करना,
अविरल बहती पुरवाई को, ठहरा कर संबोधित करना.....

शोषित जन मन की पीड़ा को, ताप भरे शब्दों में कहना,
सीमा सामाजिक लाँघ के भी, अपनी सीमा के भीतर रहना.....
चुप को चुप रखकर भी, चुप के अर्थों को शब्दों में कहना,
चुप के मूक़ वीराने को देना, कुछ संवादों का गहना......

नदिया दरिया झरने झीलें, बिन बोले कुछ कह जाते हैं,
पढ़ लो तो है अनकही गाथा, वरना खाली बह जाते हैं....
असीमित अनुभव संचित कर, चंदा सूरज चुप रह जाते हैं,
इनकी दुर्गम भाषा के भाव, केवल कवि ही कह पाते हैं.....

Wednesday, December 9, 2009

कब जाने खुद को भूल गया

खड़ा रहा उस रस्ते पर,
पर पीछे मुड़ना भूल गया...
न आज के साथ मै चल पाया,
और पिछला कल भी भूल गया....
बड़े नामों की दुनिया में,
मै काम बड़े करता आया....
पर छोटी छोटी बातों पर,
मै खिलकर हँसना भूल गया.....


बिना किसी को साथ लिए,
मै सात समुन्दर फिर आया....
पर घर को जाने वाली नन्ही,
उन गलियों को मै भूल गया.....


कर मेल जोल सब लोगों से,
कई दोस्त बनाए मिल मिल के....
दो लफ्ज़ सुनने को घर बैठी,
माँ से बात मै करना भूल गया.....
खूब कमाई की मैने,
और नाम कमाया दुनिया में....
पर खुद को साबित करने में,
कब जाने खुद को भूल गया....

Saturday, October 17, 2009

कोई खरीददार न रहा

हार के हम बिकने आये, पर आज कोई बाज़ार न रहा,

मायूस खड़े हैं बीच चौराहे, कोई खरीददार न रहा..........


एक समय था गली मोहल्ले, ऊँची बोली लगती थी,

बड़े व्यापारियों के चेहते थे, चमचम रेहड़ी सजती थी,

वही पुराने जमघट लगते, बस हमसे साक्षात्कार न रहा.....

मायूस खड़े हैं बीच चौराहे, कोई खरीददार न रहा..........


हर विज्ञापन की जान भी हम थे, हर मेले का मेहमान भी हम थे,

थे किसी के शौक नवाबी, और जरुरत का सामान भी हम थे,

माल अभी भी वही है खालिस, पर कोई लेनदार न रहा.......

मायूस खड़े हैं बीच चौराहे, कोई खरीददार न रहा..........

Friday, October 16, 2009

अजीब बंदिशें

बहुत अजीब बंदिशें हैं, इश्क की फ़क़त,

न उसने कैद रखा, न ही हम फरार हुए....

तमाम उम्र की गर्दिशें, हैं एक हँसी की नेमतें,

ना ही बहला दिल हमारा, न ही हम बेजार हुए......

हमने सुना इश्क दरिया, आग का होता मगर,

न ही उसमे डूब पाये, ना ही हम उस पार हुए.....

Wednesday, October 14, 2009

आकर मेरे एहसास में उम्मीद को सहला गया



जीत में हार

जीतने वाले को मिली, एक हार का मैं हाल हूँ
जो भी चाहा, वो ही मिला, फिर भी मैं बेहाल हूँ
जिस जीत का जशन, चारो ओर मेरे मन रहा
उस जीत में शामिल हादसे की मैं एक मिसाल हूँ


आये हैं मिलने यार मेरे बांटने मेरी ख़ुशी
भीगी आँखें, लब पर हंसी, कैसा एक जंजाल हूँ
जीतने के जोश में, जाने कितने कसीदे पढ़े
उस जीत की मुस्कान के पीछे छुपा मलाल हूँ
..................जीतने वाले को मिली, एक हार का मैं हाल हूँ
जो भी चाहा, वो ही मिला, फिर भी मैं बेहाल हूँ


आज हर कोई मुझे तकदीर का धनी कहे
अपनी दौलत के तले, दबा हुआ कंगाल हूँ
जाने किस जीत को पाने में सब कुछ खो दिया
जीत कर ख़ुशी को बेचने वाला एक दलाल हूँ
..................जीतने वाले को मिली, एक हार का मैं हाल हूँ
जो भी चाहा, वो ही मिला, फिर भी मैं बेहाल हूँ


हार का अब रास्ता, कोई दिखा दे मुझको कभी
हार खो जाने के ग़म में एक नाच मैं बेताल हूँ
बील जाए जीत के सावन का मौसम जल्दी ही
हार के पतझड़ को तरसता, एक सूना साल हूँ
..................जीतने वाले को मिली, एक हार का मैं हाल हूँ
जो भी चाहा, वो ही मिला, फिर भी मैं बेहाल हूँ

Monday, January 5, 2009

आखिर क्या गिला है

सर्द हो गया रिश्ताएक बिखरा-बिखरा घर,
एक ठंडा सा इंसानएक बिका हुआ सामान,
कुछ बेतुकी सी बातें, और झूठों की सौगातें,
भूरी आँखों की चालाकीठोकर खाता सम्मान,

जोड़ के तुझसे नाता, यही तो हमें मिला है........
अब भी हमसे पूछते हो, आखिर क्या गिला है.....

आँखों का पथरानाडर-डर के नींद बिताना,
जज्बातों का जंजालखुलते धोखे और चाल,
एक गहरी सी ख़ामोशीहर दिन आती बेहोशी,
एक बरसों के नाते का, उलझा सुलझा सा जाल,

ढूंढ़ रहा हूँ कब सेपर विश्वास नहीं मिला है....
अब भी हमसे पूछते हो, आखिर क्या गिला है.....

वो बातों में मासूमी, हर सच को झूठ बताना,
दुनिया की सब बातों से, खुद को अंजान बताना,
भोलेपन का दिखलावा, झूठी भगवान् की पूजा,
और कहना हर बात पर, तुम बिन नहीं कोई दूजा,

समझ नहीं क्यूँ पाया, खुद से यही गिला है ......
तुमसे नहीं गिला है.... तुमसे नहीं गिला है......

एक झूठा लफ्ज़ मुहब्बत का...

क्यूँ जीवन भर की खा ली कसमेंसुन एक झूठा लफ्ज़ मुहब्बत का... 
क्यूँ देखे हमने  इतने सपने, सुनकर एक झूठा लफ्ज़ मुहब्बत का... 

रिश्ते, नाते, विश्वास, समझ, वो खेल गए सब बातों से,
और हम समझे इसको चाहत, सुन एक झूठा लफ्ज़ मुहब्बत का...

हमने छोड़ी यारी, बस्ती, और आँख मूँद ली धंधे से,
वो करते रहे हमसे धोखा, कहकर एक झूठा लफ्ज़ मुहब्बत का...

वो आँख लड़ाते हैं सबसे, वो हाथ लगाते हैं सबको..
वो फाँस रहे सब दुनिया को, कह एक झूठा लफ्ज़ मुहब्बत का...

यूँ आँख में रखकर भोलापन, वो छुरा पीठ में घोपते हैं,
फिर आते हैं, पुचकारते हैं, कह एक झूठा लफ्ज़ मुहब्बत का...

कैसे तुझ संग जीवन जी लूं, कैसे तुझको अपना कह लूं,
जान के भी, कि प्यार तेरा, है, एक झूठा लफ्ज़ मुहब्बत का...