Thursday, January 22, 2015

(तर्ज: कहीं दूर जब दिन ढल जाये)

कभी भंवर में जो हम पड़ जाएँ
नैया हमारी हिचकोले खाए…. संभल पाए
मेरा कन्हैया हाथ पकड़ ले
बालक तेरा कहीं डूब जाएडूब जाए

छाने लगी मन पे ये घोर उदासी
अब तो तू सुन ले हारे के साथी
घनी चमक है, सब जगमग है
राह मगर कोई नज़र आये, नज़र आये
कभी भंवर में जो हम पड़ जाये.........

खो गए कहाँ मेरे सारे सपने
तोड़ के बंधन गए सब अपने
तू ही सहारा, तुझको पुकारा
कोई नहीं मेरा यहाँ तेरे सिवाय, तेरे सिवाय

कभी भंवर में जो हम पड़ जाये.........