Tuesday, September 10, 2013

ऐ दर्द कभी तू बाहर तो आ

क्यों अटका है यूँ आँखों में, ऐ दर्द कभी तू बाहर तो आ
खोल कभी दिल के पन्ने, ऐ दर्द कभी तू बाहर तो आ

यों गुमसुम गुमसुम बैठा है, कैसा अंजाना भार लिए
अब रूह भी मेरी बोझल है, एक सन्नाटे का सार लिए
करने आंसा इन साँसों को, पतझड़ में मझदार तो ला
ऐ दर्द कभी तू बाहर तो आ, ऐ दर्द कभी तू बाहर तो आ

चन्दा, सूरज, भूमि, दरिया, सब चलते है पहले जैसे
बस मै ही ठहरा ठहरा हूँ, कोई पांवों में हो बेडी जैसे 
सज़ा तू दे, कर बरी या अब, बंदिश का अंजाम तो ला
ऐ दर्द कभी तू बाहर तो आ, ऐ दर्द कभी तू बाहर तो आ

थमे थमे इस दिल में, अब कोई भी उन्माद नहीं
कोई नहीं है अब अपना, किसी से अब संवाद नहीं
जाने कब का प्यासा हूँ, एक अश्रु का उपकार तो ला
ऐ दर्द कभी तू बाहर तो आ, ऐ दर्द कभी तू बाहर तो आ

Saturday, September 7, 2013

हर हंसी से अब में डरता हूँ...

आंसू से भीगे पंख मेरे अब उड़ने से मै डरता हूँ
जाने क्या दर्द छुपा रखा हो, हर हंसी से अब में डरता हूँ

विश्वास, प्यार, सपने, अपने, हर शब्द से अब मै डरता हूँ
कब, कौन, कहाँ, क्यूँ छिन  जाए, हर रिश्ते से अब डरता हूँ
जाने क्या दर्द छुपा रखा हो, हर हंसी से अब मै डरता हूँ

रगीं महफ़िल में भी हावी, उस तन्हाई से डरता हूँ
जो शोर में भी सूना सूना, उस वीराने से डरता हूँ
जाने क्या दर्द छुपा रखा हो, हर हंसी से अब मै डरता हूँ

किसकी चादर कितनी मैली, उस मसले से मै डरता हूँ
तन नंगा, लिहाफ नहीं, खुद की लाचारी से मै डरता हूँ
जाने क्या दर्द छुपा रखा हो, हर हंसी से अब मै डरता हूँ

ठहरे दरिये सी ज़ीस्त मेरी, हर हलचल से मै डरता हूँ
बुझते दिए के खौफ सा अब, हर झोंके से मै डरता हूँ
जाने क्या दर्द छुपा रखा हो, हर हंसी से अब मै डरता हूँ

कतरा कतरा क्यूँ काटते हो, अब जिबाह हमारा कर डालो
ले सांस मेरी, मुझे सांस तो दो, अब जीने से मै डरता हूँ
जाने क्या दर्द छुपा रखा हो, हर हंसी से अब मै डरता हूँ