Saturday, October 17, 2009

कोई खरीददार न रहा

हार के हम बिकने आये, पर आज कोई बाज़ार न रहा,

मायूस खड़े हैं बीच चौराहे, कोई खरीददार न रहा..........


एक समय था गली मोहल्ले, ऊँची बोली लगती थी,

बड़े व्यापारियों के चेहते थे, चमचम रेहड़ी सजती थी,

वही पुराने जमघट लगते, बस हमसे साक्षात्कार न रहा.....

मायूस खड़े हैं बीच चौराहे, कोई खरीददार न रहा..........


हर विज्ञापन की जान भी हम थे, हर मेले का मेहमान भी हम थे,

थे किसी के शौक नवाबी, और जरुरत का सामान भी हम थे,

माल अभी भी वही है खालिस, पर कोई लेनदार न रहा.......

मायूस खड़े हैं बीच चौराहे, कोई खरीददार न रहा..........

Friday, October 16, 2009

अजीब बंदिशें

बहुत अजीब बंदिशें हैं, इश्क की फ़क़त,

न उसने कैद रखा, न ही हम फरार हुए....

तमाम उम्र की गर्दिशें, हैं एक हँसी की नेमतें,

ना ही बहला दिल हमारा, न ही हम बेजार हुए......

हमने सुना इश्क दरिया, आग का होता मगर,

न ही उसमे डूब पाये, ना ही हम उस पार हुए.....

Wednesday, October 14, 2009

आकर मेरे एहसास में उम्मीद को सहला गया



जीत में हार

जीतने वाले को मिली, एक हार का मैं हाल हूँ
जो भी चाहा, वो ही मिला, फिर भी मैं बेहाल हूँ
जिस जीत का जशन, चारो ओर मेरे मन रहा
उस जीत में शामिल हादसे की मैं एक मिसाल हूँ


आये हैं मिलने यार मेरे बांटने मेरी ख़ुशी
भीगी आँखें, लब पर हंसी, कैसा एक जंजाल हूँ
जीतने के जोश में, जाने कितने कसीदे पढ़े
उस जीत की मुस्कान के पीछे छुपा मलाल हूँ
..................जीतने वाले को मिली, एक हार का मैं हाल हूँ
जो भी चाहा, वो ही मिला, फिर भी मैं बेहाल हूँ


आज हर कोई मुझे तकदीर का धनी कहे
अपनी दौलत के तले, दबा हुआ कंगाल हूँ
जाने किस जीत को पाने में सब कुछ खो दिया
जीत कर ख़ुशी को बेचने वाला एक दलाल हूँ
..................जीतने वाले को मिली, एक हार का मैं हाल हूँ
जो भी चाहा, वो ही मिला, फिर भी मैं बेहाल हूँ


हार का अब रास्ता, कोई दिखा दे मुझको कभी
हार खो जाने के ग़म में एक नाच मैं बेताल हूँ
बील जाए जीत के सावन का मौसम जल्दी ही
हार के पतझड़ को तरसता, एक सूना साल हूँ
..................जीतने वाले को मिली, एक हार का मैं हाल हूँ
जो भी चाहा, वो ही मिला, फिर भी मैं बेहाल हूँ