यह अजब सी दास्ताँ, किसने लिखी किसने पढ़ी,
एक बार तेरा हाथ थामा, और ज़िन्दगी बस चल पड़ी
झुकती नज़रों में तमन्ना, न जाने कितने घर लिए,
उड़ रही थी हसरतें, ख़्वाबों के नए कुछ पर लिए,
अनवरत लहरों सी आरज़ू, साहिल से मिलने चल पड़ी....
एक बार तेरा हाथ थामा, और ज़िन्दगी बस चल पड़ी....
पहले लम्हे से चल पड़े, कुछ अजनबी से कारवाँ,
दिल की तमन्ना ने देखा, एक नया सा एह्कशां,
चलते रहें बस साथ यूँ ही जोड़ते सपने हर घडी.....
एक बार तेरा हाथ थामा, और ज़िन्दगी बस चल पड़ी...v
Tuesday, February 2, 2010
Wednesday, January 13, 2010
सपनो का आशियाँ
सपने सच होते अगर तो, एक बनाता आशियाँ,
खुशनुमा रंगी महल, जहाँ कदमो तले हो अह्कशां...
कल्पना की छत तले, सपनो से सजे फर्श हो,,
दीवार के हर एक कण में, उम्मीद का स्पर्श हो,
नीव का हर एक पत्थर, विश्वास से होता जमा,
खुशनुमा रंगी महल जहाँ कदमो तले हो अह्कशां......
आवभगत करते दरवाजे, नम्रता की दहलीज़ हो,,
उल्लास वर्णों से रंगी कमरे की हर एक चीज़ हो,
आरज़ू के निकुंज में, होता अनुभवी बागबां,
खुशनुमा रंगी महल, जहाँ कदमो तले हो अह्कशां......
आस्था के स्वरुप का, उपासना स्थान हो,
न रहीम, न यीशू, न ही वो भगवान हो, `
स्वछन्द मुक्त भावों में, विकारो का न हो निशाँ,
खुशनुमा रंगी महल, जहाँ कदमो तले हो अह्कशां......
Monday, January 11, 2010
एहसास गुमशुदा रहता है
आँखों के तले इक दरिया है,
पर जाने क्यूँ नहीं बहता है,,,
चादर ढक सोती उम्मीदें,
मन भारी-भारी रहता है.....
अवसाद नहीं है मुझको फिर भी,
इक खलिश का आलम रहता है,,,
जड़ पत्थर हो गयी हैं आँखें,
जाने क्या चलता रहता है.....
चादर ढक सोती उम्मीदें, मन भारी-भारी रहता है.....
जमती यारों संग महफ़िल भी,
बस मुझमे विराना रहता है,,,
हँसता दुनिया के संग मै भी
पर एहसास गुमशुदा रहता है.....
चादर ढक सोती उम्मीदें, मन भारी-भारी रहता है.....
Tuesday, January 5, 2010
आज फिर दिल चाहता है
मिलना तस्सवुर में तुझे, आज फिर दिल चाहता है
दोहराना फिर वह वाक़या, आज फिर दिल चाहता है
अजनबी की तरह, हम तुम मिले थे एक दिन
सोचा न था यह दोस्ती इतनी बढ़ेगी एक दिन
प्यार तुझसे क्या हुआ, सोचा तुझे बस रात दिन
एहसास में घुलती गयी, तेरा नशा बढ़ा रात दिन
अजनबी बनकर यूँ मिलना, आज फिर दिल चाहता है
नव प्रेम का वह नशा, आज फिर दिल चाहता है
प्यार के उपवन में आंधी, किस्मत की फिर ऐसी चली
सपनो के पत्ते झड़ गए, ख्वाबो की टूटी हर कली
अरमानो के ठूंठों के बीच फिर बहारे न पली
हो गयी जब तू जुड़ा तो क्या करे ज़िंदादिली
इस निकुंज को फिर बसाना, आज फिर दिल चाहता है
इस ज़िन्दगी में ज़िंदादिली, आज फिर दिल चाहता है
दोहराना फिर वह वाक़या, आज फिर दिल चाहता है
अजनबी की तरह, हम तुम मिले थे एक दिन
सोचा न था यह दोस्ती इतनी बढ़ेगी एक दिन
प्यार तुझसे क्या हुआ, सोचा तुझे बस रात दिन
एहसास में घुलती गयी, तेरा नशा बढ़ा रात दिन
अजनबी बनकर यूँ मिलना, आज फिर दिल चाहता है
नव प्रेम का वह नशा, आज फिर दिल चाहता है
प्यार के उपवन में आंधी, किस्मत की फिर ऐसी चली
सपनो के पत्ते झड़ गए, ख्वाबो की टूटी हर कली
अरमानो के ठूंठों के बीच फिर बहारे न पली
हो गयी जब तू जुड़ा तो क्या करे ज़िंदादिली
इस निकुंज को फिर बसाना, आज फिर दिल चाहता है
इस ज़िन्दगी में ज़िंदादिली, आज फिर दिल चाहता है
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