Sunday, December 13, 2009

कवि का कार्य

कठिन कार्य जो कविगण करते, सरल वो दुनिया को लगते हैं,
दुनिया को हरपल यों लगता, हम व्यर्थ ही रातों को जगते हैं....

सबके वश का काम नहीं है, सनाट्टे अनुवादित करना,
मूक़ लबों की बात चुराकर, गूढ़ भाव को साबित करना...
बहते झरनों की कल-कल को, शब्दों में परिभाषित करना,
अविरल बहती पुरवाई को, ठहरा कर संबोधित करना.....

शोषित जन मन की पीड़ा को, ताप भरे शब्दों में कहना,
सीमा सामाजिक लाँघ के भी, अपनी सीमा के भीतर रहना.....
चुप को चुप रखकर भी, चुप के अर्थों को शब्दों में कहना,
चुप के मूक़ वीराने को देना, कुछ संवादों का गहना......

नदिया दरिया झरने झीलें, बिन बोले कुछ कह जाते हैं,
पढ़ लो तो है अनकही गाथा, वरना खाली बह जाते हैं....
असीमित अनुभव संचित कर, चंदा सूरज चुप रह जाते हैं,
इनकी दुर्गम भाषा के भाव, केवल कवि ही कह पाते हैं.....

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