Tuesday, January 5, 2010

आज फिर दिल चाहता है

मिलना तस्सवुर में तुझे, आज फिर दिल चाहता है
दोहराना फिर वह वाक़या, आज फिर दिल चाहता है


अजनबी की तरह, हम तुम मिले थे एक दिन
सोचा न था यह दोस्ती इतनी बढ़ेगी एक दिन
प्यार तुझसे क्या हुआ, सोचा तुझे बस रात दिन
एहसास में घुलती गयी, तेरा नशा बढ़ा रात दिन
अजनबी बनकर यूँ मिलना, आज फिर दिल चाहता है
नव प्रेम का वह नशा, आज फिर दिल चाहता है

 प्यार के उपवन में आंधी, किस्मत की फिर ऐसी चली
सपनो के पत्ते झड़ गए, ख्वाबो की टूटी हर कली
अरमानो के ठूंठों के बीच फिर बहारे न पली
हो गयी जब तू जुड़ा तो क्या करे ज़िंदादिली
इस निकुंज को फिर बसाना, आज फिर दिल चाहता है
इस ज़िन्दगी में ज़िंदादिली, आज फिर दिल चाहता है 

No comments:

Post a Comment