सर्द हो गया रिश्ता, एक बिखरा-बिखरा घर,
एक ठंडा सा इंसान, एक बिका हुआ सामान,
कुछ बेतुकी सी बातें, और झूठों की सौगातें,
भूरी आँखों की चालाकी, ठोकर खाता सम्मान,
जोड़ के तुझसे नाता, यही तो हमें मिला है........
अब भी हमसे पूछते हो, आखिर क्या गिला है.....
आँखों का पथराना, डर-डर के नींद बिताना,
जज्बातों का जंजाल, खुलते धोखे और चाल,
एक गहरी सी ख़ामोशी, हर दिन आती बेहोशी,
एक बरसों के नाते का, उलझा सुलझा सा जाल,
ढूंढ़ रहा हूँ कब से, पर विश्वास नहीं मिला है....
अब भी हमसे पूछते हो, आखिर क्या गिला है.....
वो बातों में मासूमी, हर सच को झूठ बताना,
दुनिया की सब बातों से, खुद को अंजान बताना,
भोलेपन का दिखलावा, झूठी भगवान् की पूजा,
और कहना हर बात पर, तुम बिन नहीं कोई दूजा,
समझ नहीं क्यूँ पाया, खुद से यही गिला है ......
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